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लकड़ी काटने वाले लकड़हारा की कहानी, lakdi katne wala ki kahani

लकड़ी काटने वाले लकड़हारा की कहानी, lakdi katne wala ki kahani



लकड़ी काटने वाले लकड़हारा की कहानी, lakdi katne wala ki kahani

video source - youtube| video by - majedar kahani

लकड़ी काटने वाले लकड़हारा की कहानी, lakdi katne wala ki kahani

Kahani : नागपुर नाम के गांव में गणपति नाम का एक व्यक्ति रहता था, वह सुबह-सुबह जंगल में लकड़ी काटने जाता था, और वह कटे हुए लकड़ी को समेटकर नदी के पास में आ जाता था।

वह उन लकड़ियों को स्तंभ जैसे सजोने लगता था, और दोपहर होते ही खाना खाने लगता था और फिर उसी काम में लग जाता था।

फिर शाम तक यही करता और फिर घर लौट आता था, प्रतिदिन वह यह काम करते रहता था।

एक दिन वहां एक व्यापारी आया और वे उस व्यक्ति से पूछा, कि क्या कर रहे हो गणपति आजकल मार्केट में लकड़ियां बेचने नहीं आ रहे हो। तुम्हारे साथियों से भी पूछा पर उनको भी तुम्हारे बारे में पता नहीं है।

फिर गणपति कहता है, कि महोदय मैं इन लकड़ियों से पूल बना रहा हूं। इसलिए मार्केट में लकड़ियां बेचने नहीं आ रहा हूं।

फिर व्यापारी कहता है, कि क्या पूल बना रहे हो, यह काम तो सरकारी है। फिर लकड़ी वाला कहता है ,कि इसे सरकार नहीं बना रही है, तो इसे मैं ही बना रहा हूं। क्या आपको पता है महोदय अगर यह ब्रिज होती तो आज मेरी पत्नी जिंदा होती।

फिर व्यापारी कहता है कि तुम्हारी पत्नी जिंदा होती वह कैसे?

फिर गणपति कहता है, कि हमारे गांव से शहर जाने के लिए इस नदी को पार करना पड़ता है । और अगर नदी पार ना करना हो तो पहाड़ को पार करके जाना पड़ता है, किसी आपातकालीन समय में केवल 15 मिनट में ही इससे शहर पहुंच सकते हैं।

मैंने कई बार सरकारी दफ्तरों में इसके लिए चक्कर भी काटे हैं, लेकिन वह इस काम को नहीं करवाते, इसीलिए मैं बिना किसी की मदद के इस काम को अकेले कर रहा हूं। ताकि मेरी पत्नी जैसे और किसी की मौत ना हो।

इस तरह वह ब्रिज बनाने का काम लगातार करता रहा धूप हो या बारिश हुआ अपने काम से पीछे नहीं हटता था, फिर उसका काम न्यूजपेपर पर भी आने, टीवी पर भी उसका ही बोलबाला था।

कुछ लोग कहने लगे, कि अकेले ही पूल कैसे बनाएगा पत्नी के जाने के कारण लगता है, पागल हो गया है ऐसा ही कुछ साल तक चलता रहा और आखिरकार एक दिन ब्रिज बन ही गया।

तब अधिकारी नेता और गांव वाले सब वहां पर आए टीवी वाले उनका इंटरव्यू लेने लगे।

फिर आधिकारिक ने कहा कि मुझे माफ करो गणपति जी, मैं आपका कोई सहायता नहीं कर पाया।

फिर जमींदार से आप साहब ने कहा, कि मैं आप लोगों के बारे में कभी नहीं सोचा आप धन्य हैं।

तब एक व्यक्ति ने कहा हां हां गणपति जी हम लोग सोच रहे थे, कि पति अपनी के जाने के बाद पगला गया होगा।

फिर उसने कहा, कि किसी को मुझसे माफी मांगने की जरूरत नहीं है, जीवन कितना महत्वपूर्ण है, यह मैं जानता हूं फिर सब उस ब्रिज को उपयोग करने लगे । जिसे देख गणपति बहुत खुश हुआ।

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