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संबलपुर गांव में एक बिशन सिंह नाम का व्यक्ति रहता था, उसका एक बेटा था जिसका नाम मुन्ना था, मुन्ना एक पैर से लंगड़ा था वह ठीक से नहीं चल पाता था, मुन्ना के इस हाल को देखकर उसके मां-बाप बहुत दुखी रहते थे।
एक दिन उसकी स्कूल के मैदान में दौड़ प्रतियोगिता की तैयारी चल रही थी, राम और रहीम नाम के दो लड़के दौड़ रहे थे। आखिर में राम ने दौड़ को जीता यह देख मुन्ना रहीम से कहता है कि रहीम तुम अच्छा दौड़ रहे थे प्रतियोगिता कल है ना तुम ही जीतोगे देख लेना।
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रहीम कहता है कि यह मुझसे कैसे जीतेगा मुझसे कोई नहीं जीत सकता कल मैं ही जीतूंगा वैसे भी तुम्हारी सलाह कौन लेगा तुम ठहरे लंगड़े, तुम्हें दौड़ प्रतियोगिता के बारे में बात करने का कोई हक नहीं है।
यह बात सुनकर मुन्ना दुखी होकर वहां से चला गया।
जब वह अपने घर जा रहा था तब पेड़ के पास से एक साधु को बेहोश देखा, मुन्ना तुरंत पानी लाकर उसके चेहरे पर छिड़का साधु जी उठ कर बैठ गए।
फिर साधु मुन्ना को कहते हैं कि बेटा मैं भूख के कारण बेहोश होकर गिर गया था, तुमने समय पर आकर मुझे बचा लिया इसके बदले मैं तुम्हें एक बढ़िया ईनाम देना चाहता हूं लेकिन इसे केवल अच्छे काम के लिए ही प्रयोग किया जाना चाहिए, ऐसा कह कर उसे एक जादुई चप्पल देकर वहां से चले गए।
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अगले दिन मुन्ना मास्टर जी से कहता है कि मास्टर जी मेरा भी नाम दौड़ प्रतियोगिता में लिख लो, मैं भी दौड़ना चाहता हूं
प्रतियोगिता शुरू हुई..
राम और रहीम दोनों बहुत तेज दौड़ रहे थे, लेकिन मुन्ना उन दोनों को टक्कर देते हुए तेजी से आगे निकला और प्रतियोगिता जीत लिया। तभी सब खुश होकर ताली बजाने लगे।
और मास्टर जी ने मुन्ना को ट्रॉफी भी दी।
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जादुई चप्पल |
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और फिर मुन्ना एक बहुत बड़ा खिलाड़ी बनकर नाम रोशन किया और गरीबों की मदद की, और खुशी-खुशी जीवन बिताने लगा।
आज के kahani से हमें क्या शिक्षा मिलती है कि हमें विकलांगों का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए, उन्हें प्रोत्साहन देना चाहिए।
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