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Kar machenik ki kahani hindi,कार मैकेनिक वाले की सफलता हिंदी कहानी

Kar machenik ki kahani hindi,कार मैकेनिक वाले की सफलता हिंदी कहानी

Kar machenik ki kahani hindi,कार मैकेनिक वाले की सफलता हिंदी कहानी

video source- youtube| video by- Majedar kahani

Kar machenik ki kahani hindi,कार मैकेनिक वाले की सफलता हिंदी कहानी

Kahani : कई साल पहले गंगापुर नाम के गांव में सचदेव नाम का पंच रहता था, उनका एक बेटा था जिसका नाम था वासुदेव था, बचपन से ही वसुदेव को खराब चीजों को बनाना, बिगड़े हुए चीजों को बनाना अच्छा लगता है ।

एक बार वसुदेव अपनी साइकिल रिपेयर कर रहा था, गांव के लोग सचदेव के पास अपनी समस्या लेकर आए थे और समस्या का समाधान कर रहे थे, फिर कुछ बड़ों ने वासुदेव को देखा और कहा कि काम का आदमी है।

सचदेव उनकी बातों से खुश होकर अपने बेटा को बुलाता है और पूछता है कि बेटा तुम बड़ा होकर क्या बनोगे, फिर वसुदेव कहता है कि मैं बड़ा होकर एक अच्छा मैकेनिक बनूंगा।

 और समय बीतता गया और वह जवान हो गया और फिर उसने अपनी डिग्री हासिल की और फिर सर सचदेव ने उसे सरकारी नौकरी ढूंढने के लिए कहा।

वासुदेव ने भी खूब चेष्टा की पर कहीं भी नौकरी नहीं मिली मैं तुम्हारे बारे में बहुत चिंतित हूं तुम क्या करोगे फिर वासुदेव कहता है कि मैं मैकेनिक बनूंगा।

1 दिन गंगापुर गांव में कलेक्टर साहब आए गांव की समस्याओं को देखकर जब वह वापस लौट रहे थे, तब उनकी गाड़ी खराब हो गई।

वसुदेव वहीं पास में ही था और जल्दी से आकर 5 मिनट में गाड़ी को ठीक कर दिया ।

फिर कलेक्टर पूछता है, कि कौन हो बेटा तुम क्या नाम है तुम्हारा ? फिर वह सदैव कहता है, कि जी मेरा नाम वासुदेव है और मैं इस गांव के पंच का बेटा हूं।

फिर कलेक्टर सरपंच की ओर देखते हुए कहता है, कि आपका बेटा अच्छा मैकेनिक बनेगा। फिर सचदेव कहता है, कि क्या साहब मैकेनिक भी कोई काम है क्या?

तब कलेक्टर ने कहा कि बच्चों को जिस काम में रुचि हो उसी काम को प्रोत्साहित देना चाहिए। तभी आगे जाकर हुए उस क्षेत्र में नाम कमाएंगे।

फिर कलेक्टर ने कहा कि वासुदेव कल मेरे ऑफिस आ जाना मैं तुम्हें लोन दिलवा दूंगा। फिर वासुदेव लोन लिया और एक मोटर मैकेनिक का दुकान खोला।

फिर अत्यधिक मेहनत करके उसने एक बैटरी वाली कार बनाई और फिर उस कार को गलियों में घुमाया और कलेक्टर साहब के पास गया।

 कलेक्टर साहब ने वासुदेव की बहुत प्रशंसा की और कहा कि मैं बिना पेट्रोल की चलने वाली कार को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ वासुदेव, शाबाश।

इसके बाद जब यह खबर अखबार में छपा तो बड़ी-बड़ी कंपनियों का वसुदेव के घर के सामने लाइन लग गया इसे देखकर उसके पिता सचदेव बहुत गर्वित हुए।

तो बच्चों इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है, कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। अगर उसे मन लगाकर किया जाए तो उसमें सफलता अवश्य मिलती है।

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